भारतीय सेना की महार रेजिमेंट की कहानी
अंग्रेज-मराठा युद्धों के दौरान अंग्रेजों की सेवा करने से लेकर स्वतंत्रता के बाद देश सेवा तक महार रेजिमेंट की यात्रा बेहद मुश्किल रही है.
महार रेजिमेंट भारतीय सेना का एक इन्फैन्ट्री रेजिमेंट है. यह एकमात्र रेजिमेन्ट है जिसे भारत के सभी समुदायों और क्षेत्रों के सैनिकों को मिलाकर बनाया गया है. अंग्रेजों की सेवा करने वाले महार दलित सैनिकों ने ब्राह्मण पेशवाओं के सैनिकों को हराया था. आज भी महार भारतीय सेना का एक प्रमुख अंग है. आजादी के बाद से यह एक रेजिमेंट का नाम है जिसने देश को दो सेना प्रमुख दिए. कई युद्ध जीते और सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परम वीर चक्र तक अपने नाम किया.
1981 से 1983 तक सेना प्रमुख रहे के. वी. कृष्ण राव महार रेजिमेंट से थे.
1985 से 1988 तक सेना प्रमुख रहे कृष्णस्वामी सुंदरजी महार रेजिमेंट से थे.
महार रेजिमेंट 1962 के युद्ध के दौरान लद्दाख में सक्रिय रहा. बोलो हिंदुस्तान की जय के नारे के साथ 1971 की युद्ध के दौरान पंजाब में लड़ाई लड़ी. 1987 में श्रीलंका में शांति कार्रवाई के दौरान भी सक्रिय रहा.
महार रेजिमेंट को पहली बार मराठों के खिलाफ युद्धों के दौरान इस्तेमाल किया गया था जिसे बाद में गैर-मार्शल वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया गया. उसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा अभियान में शामिल होने के लिए भेजा गया. रेजिमेंट ने 1818 में कोरेगांव की लड़ाई सहित एक सौ से अधिक वर्षों तक साम्राज्य की सेवा की, जब ब्रिटिश सेना के महार सैनिकों ने पेशवा सैनिकों पर विजय प्राप्त की.
1892 में महार रेजिमेंट को विघटित कर दिया गया और उसे विरोध और एक आंदोलन के बाद पुनरुत्थित किया गया. बीआर अंबेडकर जिनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में एक सैनिक थे, महार रेजिमेंट को फिर से स्थापित करने की वकालत लगातार कर रहे थे. आजादी के बाद महार रेजिमेंट के आधिकारिक इतिहास ने लिखा, विभाजन के दौरान और बाद में विकट परिस्थितियों में, रेजिमेंट ने हिंसक लड़ाई में लाखों शरणार्थियों के सुरक्षित स्थानांतरण में मदद की.”
news18 hindi | January 8, 2018, 7:44 AM ISThttps://hindi.news18.com/photogallery/nation/the-story-of-mahar-regiment-1220490.html
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