आंबेडकर हिंदू राष्ट्र को भारी ख़तरा क्यों मानते थे?
भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का सपना कोई आज का नया सपना नहीं है, भले ही आज वो परवान चढ़ता दिख रहा हो.
संघ और उससे जुड़े संगठन राष्ट्रगान, बीफ़, गोरक्षा और राम मंदिर पर जो तेवर दिखा रहे हैं, वो तो केवल आगाज़ है.
आरएसएस प्रमुख मोहन भावगत ने पूरे देश में गो हत्या रोकने वाला क़ानून लागू करने की वक़ालत की. आरक्षण पर पुनर्विचार का बयान भी वो पहले दे चुके हैं.
हिंदू संस्कृति को पूरे भारत के लिए आदर्श जीवन संहिता बनाना संघ का घोषित लक्ष्य है. महिलाओं के लिए ड्रेस कोड, लव जेहाद के विरुद्ध अभियान आदि तो चलते ही रहते हैं.
असल में इस्लाम आधारित अलग राष्ट्र और हिंदू राष्ट्र दोनों की मांग जुड़वा भाई की तरह पैदा हुई थी, दोनों ने एक दूसरे को संबल प्रदान किया था.
सच तो यह है कि हिंदू बहुमत के शासन के डर की ज़मीन पर ही पाकिस्तान की मांग फली-फूली थी.
डॉक्टर आंबेडकर ने 1940 में ही धर्म आधारित राष्ट्र पाकिस्तान की मांग पर आगाह करते हुए कहा था, "अगर हिंदू राष्ट्र बन जाता है तो बेशक इस देश के लिए एक भारी ख़तरा उत्पन्न हो जाएगा. हिंदू कुछ भी कहें, पर हिंदुत्व स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारे के लिए एक ख़तरा है. इस आधार पर लोकतंत्र के अनुपयुक्त है. हिंदू राज को हर क़ीमत पर रोका जाना चाहिए."
आज से लगभग 77 वर्ष पहले जिस ख़तरे के प्रति आंबेडकर ने आगाह किया था, वो आज भारत के दरवाज़े पर पुरज़ोर तरीके से दस्तक दे रहा है.
भले ही संविधान न बदला गया हो और भारत अभी भी, औपचारिक तौर पर धर्म निरपेक्ष हो, लेकिन वास्तविक जीवन में हिंदुत्ववादी शक्तियां समाज-संस्कृति के साथ राजसत्ता पर भी प्रभावी नियंत्रण कर चुकी हैं.
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